The Latest | India | [email protected]

57 subscriber(s)


K
09/12/2024 Kajal sah General Views 143 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
कविता:गांधारी की समवेदना

इतिहास के राजमार्ग पर चल कर पूर्वजों का कीर्तिरथ आता है आदर्शों के द्रुतगामी सैंधव बढ़ चले आह! अनुसरण न कर पाए हम पगचारी । ओ मेरे चक्षुहीन धृतराष्ट्र! तुम्हें दिग्भ्रम होता है, चतुड्रिक अंधकार है राह नहीं मिलती। में तुम्हारी वेदना की सहभागिनी बनूं अभेदय आवरण से ढंक लूं अपने भी दृष्टिपथ को ? द्रुतगामी सैंधव की टाप सुन पाएंगे हम, मिल पाएगी राह दोनों को गिरते - पड़ते? नहीं, चल न पाएंगे इस अनचीन्हे पथ पर हम मैंने ज्योति पाई है आओ,यह बांह गहो संबलहीन चल पाया है,कौन यहां, कब कहो! धन्यवाद शेखर जोशी

Related articles

 WhatsApp no. else use your mail id to get the otp...!    Please tick to get otp in your mail id...!
 





© mutebreak.com | All Rights Reserved