"सुनो कल हम अपनी एनिवर्सरी पर बाहर नहीं गए। आज मीटिंग जल्दी ख़त्म करके आ रहा, डिनर के लिए चलेंगे।" वेद की बातें सुन नैना की ऑंखें ख़ुशी से चमक गयी मगर अगले ही पल सास का ख्याल आया और चमक की जगह मायूसी ने ले लिया।
"मम्मी जी का क्या करेंगे।"
"अरे। माँ के लिए खाना बना दो। मैं साढ़े-सात तक आ जाऊंगा।
अच्छा सुनो, वो जो ग़ुलाबी साड़ी लखनऊ से मैं लाया था, वो पहन लेना,और । हाँ, बाल आज खुले रखना।"
ब्लश करती नैना किचन में चली गयी मगर फिर याद आया, तो बाहर आयी और सासु माँ को बता दिया, वो दोनों खाने के लिए बाहर जा रहें हैं।
सासु माँ बग़ैर कुछ बोले,पड़ोसी के यहाँ चली गयी और नैना न जाने डेढ़ घण्टे तक काम निपटा कर तैयार होती रही
गाड़ी का हॉर्न सुन कर भागते हुए बाहर आयी। वेद हाथों में उसके पसन्द के दिल वाले लाल गुब्बारे लिए मुस्कुरा रहा था। नैना बच्चों की तरह भाग कर लिपट गयी और वेद को याद आया कि, कल कैसे पूरी रात पीठ फेर कर सोई रही और सुबह भी मुँह फुला था। नैना में दुनियादारी की कम समझ थी और बचपना ज्यादा। उसी पर तो वो मर मिटा था।
"अच्छा चलो तुम तो तैयार ही हो, मैं जल्दी से फ्रेश हो लेता हूँ। माँ कहाँ है, खाना खा लिया उसने ?"
"हूँ। चलिए। "
अंदर डाइनिंग हॉल में पहुँच कर वेद दंग रह गया। पूरा टेबल खाना और गुलदस्तों से सज़ा था। किनारे पर पापा और माँ की शादी वाली ब्लैक एंड वाइट तस्वीर रखी हुई थी और बीच में कुछ कैंडल्स रखें हुए थे।
नम आंखों के साथ वेद ने नैना को देखा और उसके माथे को चूम लिया उसे अपने सीने से लगा दरवाजे पर आहट हुई। वो अलग हो कर खड़े हो गए। मम्मी जी आ गयी थी।
"अरे, तुमलोग अभी यही हो, गए नहीं। देर हो जाएगी जाओ।"
"मम्मी जी आज आपके साथ मनाएंगे इस दिन को। आप की वजह से मुझे वेद जैसे पति मिले। आपने इन्हें प्रेम सिखाया है, कैसे इज़्ज़त की जाती है अपने साथी की,उसे केसे सम्मान दिया जाता है ये बताया है। आज का दिन आपका है मम्मी जी। आइये बैठिये यहाँ।" और खुद सासु माँ के बगल में बैठ गयी। मम्मी जी के आँखों में ख़ुशी के आंसू थे
वेद ने माँ से नज़रें बचा कर नैना को आंख भर देखा
उसकी आंखो में आज नैना के लिए जो प्रेम सम्मान था वह असीम था अमिट था जन्मों जन्मों खत्म ना होने बाला
नैना ने भी कुर्सी से झुककर वेद के पैर छू लिए थे ।।
प्रेम का सबसे सुंदर रूप यही है
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