निशब्द मन और स्तब्ध मस्तिष्क संग
अस्थिर होती आत्मा के उद्वेलन से
अंसतुलित हुए विचार - उदगार
हर स्त्री के आज
शब्द अब नहीं देते साथ
कानों में गूँजता है
बस, एक ही प्रश्न
आखिर क्यों जन्में बेटियां?
क्यों बढ़ाये कोई स्त्री तुम्हारी - वंश बेल
जब तुम खेलते हो यह खेल
शक्ति - स्वरूप कहते - कहते
रक्त - रजित करते हो उनका अस्तित्व और अमानुष बन कर
मन - मान को अनगिनत आघात दे
अनावृत करते हो उनकी देह।
कवियत्री : डॉ मोनिका शर्मा।
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