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30/10/2024 Kajal sah General Views 113 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
कविता : अंकित होने दो

मैं कभी कविताएँ लिखता था शुभा! और तुम अल्पना। चाँद - तारे फूल - पत्तियाँ और शंखमुद्री लताएं चित्रित करते न जाने कब कविताओं की डायरी में मैं हिसाब लिखने लगा। कभी खत्म न होने वाला हिसाब अल्ल सुबह टूटी चप्पल से शुरु होकर देर रात में फटी मसहरी के सर्गों तक फैला अबूझ अंकों का महाकाव्य। और तुम अस्पताल, रोजगार दफ्तर और स्कूलों की सूनी देहरी पर माँडती रही वर्तुल अल्पना साल दर साल! साल दर साल!! शुभा अभिशप्त है पीढ़ियाँ लिखने को कविताएं बुनने को सपने और अंकित करने को सतरंगी दुनियाँ। न रोको उन्हें लिखने दो शुभा दीवारें पर नारे हो सही अंकित होने दो उनके सपनों का इतिहास। शेखर जोशी

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