एक रात, रवि ने अपनी पत्नी सुषमा के चेहरे की ओर देखा। उसके चेहरे पर उदासी की हल्की परछाई थी। रवि ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "सुषमा, मुझे एहसास है कि मैं तुम्हें वो खुशी नहीं दे पा रहा हूँ, जिसकी तुम हकदार हो। अगर तुम्हें किसी और से अपनी ज़रूरतें पूरी करनी हैं, तो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगा।" सुषमा की आँखों में हैरानी और दर्द दोनों भर गए। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि रवि ने उससे ऐसी बात कह दी थी।
सुषमा और रवि की शादी को दस साल हो चुके थे। दोनों एक-दूसरे के साथ हर उतार-चढ़ाव में साथ रहे थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से रवि की सेहत और व्यस्तता के चलते उनकी शादीशुदा जिंदगी में शारीरिक संतोष की कमी हो गई थी। सुषमा अपने पति से बेहद प्यार करती थी और हमेशा उसकी परेशानियों में उसका साथ दिया था। लेकिन उसकी भावनात्मक और शारीरिक ज़रूरतें भी उसे भीतर से तन्हा बना रही थीं।
रवि को सुषमा की स्थिति का अहसास था। उसने कई बार महसूस किया कि सुषमा के चेहरे पर अब वो खुशियाँ नहीं रही, जो पहले थी। उसे लगा कि वो अपनी पत्नी को वो सुख नहीं दे पा रहा, जो एक पति के रूप में उसका फर्ज था। अपनी लाचारी और प्यार के बीच झूलते हुए, उसने अपनी पत्नी को खुली इजाज़त दी कि वो अगर चाहे तो किसी और का सहारा ले सकती है।
रवि के इस प्रस्ताव ने सुषमा के दिल में एक अजीब सी उलझन पैदा कर दी। एक ओर वो अपने पति से बेहद प्यार करती थी, और दूसरी ओर उसका मन और शरीर एक अधूरेपन का एहसास कर रहे थे। लेकिन उसका दिल ये बात मानने को तैयार नहीं था कि वो किसी और के पास जाकर उस कमी को पूरा करे। उसने हमेशा अपने रिश्ते में ईमानदारी और सम्मान का महत्व रखा था, और उसे महसूस हो रहा था कि रवि की इस इजाज़त के पीछे उसका खुद का दर्द और मजबूरी है।
इस कठिन स्थिति से बाहर निकलने के लिए सुषमा ने अपनी सबसे करीबी सहेली अंजलि से बात की। अंजलि ने उसकी भावनाओं को समझते हुए कहा, "तुम्हारे और रवि के बीच का प्यार ही सबसे बड़ी ताकत है। अगर तुम दोनों इस बारे में खुलकर बात करो और अपने रिश्ते में संतुलन लाने की कोशिश करो, तो शायद ये दूरी मिट सकती है।"
सुषमा ने एक शांत शाम को रवि के साथ ईमानदारी से बातचीत की। उसने बताया कि उसे किसी और का सहारा नहीं चाहिए, बल्कि अपने रिश्ते में पहले जैसा अपनापन और प्यार चाहिए। उसने रवि से कहा कि उनके रिश्ते में शारीरिक और भावनात्मक दोनों जुड़ाव उतने ही महत्वपूर्ण हैं। उसने सुझाव दिया कि दोनों एक-दूसरे के साथ अधिक समय बिताएं और एक-दूसरे को फिर से करीब से जानें।
सुषमा की ईमानदारी और प्यार भरी बातों ने रवि को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने समझा कि उसके रिश्ते की सबसे बड़ी ताकत सुषमा का समर्पण और प्यार ही है। दोनों ने मिलकर अपने रिश्ते में नए सिरे से गर्माहट और संतुलन लाने का फैसला किया। उन्होंने एक-दूसरे के साथ छोटी-छोटी खुशियों को तलाशना और साझा करना शुरू किया, जिससे उनके रिश्ते में एक नई ताजगी आ गई।
सीख: रिश्ते में सच्ची खुशी केवल शारीरिक संतोष से नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव, संवाद, और एक-दूसरे के प्रति सम्मान से आती है। किसी भी कठिन समय में सच्चे साथी का सहारा और उसके प्रति समर्पण ही रिश्ते की असली ताकत होती है। प्यार और ईमानदारी से हर मुश्किल का हल निकाला जा सकता है।
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