आपके फ़ोन के व्हाट्सऐप ग्रुप में भी ऐसे मैसेज आते होंगे "सभी भारतीयों को बधाई! यूनेस्को ने भारतीय करेंसी को सर्वश्रेष्ठ करेंसी घोषित किया है, जो सभी भारतीय लोगों के लिए गर्व की बात है."
ये मैसेज और इस तरह के कई दूसरे मैसेज फ़ेक होते हैं लेकिन उन्हें फ़ॉरवर्ड करने वाले लोग सोचते हैं कि वो राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा रहे हैं.
बीबीसी के एक नए रिसर्च में ये बात सामने आई है कि लोग राष्ट्र निर्माण की भावना से राष्ट्रवादी संदेशों वाली फ़ेक न्यूज़ को साझा कर रहे हैं. राष्ट्रीय पहचान ख़बरों से जुड़े तथ्यों की जांच की ज़रूरत पर भारी पड़ रहा है.
रिपोर्ट की मुख्य बातें
बीबीसी ने भारत, कीनिया और नाइजीरिया में व्यापक रिसर्च किया है.
ये रिपोर्ट विस्तार से समझाती है कि कैसे इनक्रिप्टड चैट ऐप्स में फ़ेक न्यूज़ फैल रही है.
ख़बरों को साझा करने में भावनात्मक पहलू का बड़ा योगदान है.
ग़लत सूचनाओं के फैलाव के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल है. सोमवार को (आज) इसे लॉन्च किया जा रहा है.
इस रिसर्च में ट्विटर पर मौजूद कई नेटवर्कों का भी अध्ययन किया गया और इसका भी विश्लेषण किया गया है कि इनक्रिप्टड मैसेज़िंग ऐप्स से लोग किस तरह संदेशों को फैला रहे हैं.
बीबीसी की इस रिसर्च में मदद करने के लिए कुछ मोबाइल यूजर्स ने अपने फोन का एक्सेस दिया.
ये रिसर्च बीबीसी के प्रोजेक्ट के तहत किया गया है, जो ग़लत सूचनाओं के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल है.
इस शोध से पता चला कि भारत में लोग उस तरह के संदेशों को शेयर करने में झिझक महसूस करते हैं जो उनके मुताबिक़ हिंसा पैदा कर सकते हैं. लेकिन यही लोग राष्ट्रवादी संदेशों को शेयर करना अपना फ़र्ज़ समझते हैं.
भारत की तरक्की, हिंदू शक्ति और हिंदुओं की खोई प्रतिष्ठा की दोबारा बहाली से जुड़े संदेश, तथ्यों की जांच किए बिना बड़ी संख्या में शेयर किए जा रहे हैं. ऐसे संदेशों को भेजने वालों को लगता है कि वो राष्ट्र निर्माण का काम कर रहे हैं.
कीनिया और नाइजीरिया में भी फ़ेक न्यूज़ फैलाने के पीछे लोगों की फ़र्ज़ की भावना सामने आई.
लेकिन इन दोनों देशों में राष्ट्र निर्माण की भावना की बजाय ब्रेकिंग न्यूज़ को साझा करने की भावना ज़्यादा होती है ताकि कहीं अगर वो ख़बर सच हुई तो वह उनके नेटवर्क के लोगों को प्रभावित कर सकती है.
सूचनाओं को हर किसी तक पहुँचाने की भावना यहां दिखाई पड़ती है.
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