Ranjan Das Gupta | Howrah | [email protected]

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01/03/2019 Ranjan Das Gupta Politics Views 314 Comments 0 Analytics Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
मैसेज़ फॉरवर्ड करना कर्तव्य

फे़क न्यूज़ या बिना जाँच-परख के ख़बरों को आगे बढ़ाने वाले लोगों की नज़र में मैसेज या ख़बर के सोर्स से ज़्यादा अहमियत इस बात की है कि उसे उन तक किसने फ़ॉरवर्ड किया है. अगर फ़ॉरवर्ड करने वाला व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठित है तो बिना जांचे-परखे या उस जानकारी के स्रोत का पता लगाए बिना उसे आगे पहुंचाने को वे अपना कर्तव्य समझते हैं. जिस तरह की ग़लत ख़बरें सबसे ज़्यादा फैलती हैं उनमें, भारत तेज़ी से प्रगति कर रहा है, हिंदू धर्म महान था और अब उसे दोबारा महान बनाना है, या भारत का प्राचीन ज्ञान हर क्षेत्र में अब भी सर्वश्रेष्ठ है अथवा गाय ऑक्सीजन लेती है, और ऑक्सीजन ही छोड़ती है जैसी ख़बरें सबसे ज़्यादा सामने आती हैं. ऐसी ख़बरों को लोग हज़ारों की तादाद में रोज़ शेयर करते हैं और इसमें कोई बुराई नहीं देखते कि वे अपने मन की बात को सही साबित करने के लिए तथ्यों का नहीं बल्कि झूठ का सहारा ले रहे हैं. मुख्यधारा मीडिया की साख फे़क न्यूज़ के फैलाव में मुख्यधारा के मीडिया को भी ज़िम्मेदार पाया गया है. रिसर्च के मुताबिक़, इस समस्या से निबटने में मीडिया इसलिए बहुत कारगर नहीं हो पा रहा है क्योंकि उसकी अपनी ही साख बहुत मज़बूत नहीं है, लोग मानते है कि राजनीतिक और व्यावसायिक हितों के दबाव में मीडिया बिक गया है. बीबीसी ने फे़क न्यूज़ फ़ैलाने वालों के वैचारिक रुझान को ट्विटर पर 16 हज़ार अकाउंट्स के ज़रिए जांचा तो ये बात सामने आई कि मोदी समर्थकों के तार आपस में बेहतर ढंग से जुड़े हुए हैं और वे एक तरह से मिल-जुलकर एक अभियान की तरह काम कर रहे हैं. हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, मोदी, सेना, देशभक्ति, पाकिस्तान विरोध, अल्पसंख्यकों को दोषी ठहराने वाले अकाउंट आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. वे एक ख़ास तरह से सक्रिय रहते हैं जैसे वे कोई कर्तव्य पूरा कर रहे हों. इसके विपरीत, बंटे हुए समाज में इनके विरोधियों की विचारधारा अलग-अलग है, मगर मोदी या हिंदुत्व की राजनीति का विरोध उन्हें जोड़ता है. अलग-अलग विचारों के कारण मोदी विरोधियों की आवाज़ मोदी समर्थकों की तरह एकजुट नहीं है.

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